सोमवार, 3 अगस्त 2009

बेकरारी

इस कविता को मैंने अपने दोस्त की हालत देख कर लिखा था,
वो जब हमरे सामने से मुश्कुराते चले गए सच पूंछो तो मेरे दिल को चुराते गए देखा उन्होंने जब हमें तिरछी नजर से होशो हवाश पर मेरे बिजली गिर पड़ी बेकरारी मेरे दिल की बढाते चले गए इक कशिश सी है उसमे राहे नजर से दिल में समाते चले गए कर लिया फैसला हमने कर देंगें हाले दिल बयां सामने जब वो आए तो लबों पे ताला सा पड़ गया धड़कने मेरे दिल की बदते चले गए हमको भी ये गुमान है वाकिफ है मेरे हाले दिल से मिला कर नजरों को चुराते चले गए कहा दोस्तों से बताओ तरीका कोई जिससे हम कर सकें हाले दिल वो सबक हमें प्यार का सिखाते चले गए उनकी निगाहों में माय का नशा है जादू वो प्यार का चलाते चले गए आज कहेंगें कल कहेंगें सोंच कर बहलाते है दिल "प्यास" मेरे दिल की बढाते चले गए डर है कहीं प्यार के इस बरसात में रह न जाऊं "प्यासा" वो चैन मेरे दिल का उडाते चले गए ये दिल धड़क रहा है उसी का पयाम है मस्ती भरी नजर से पिलाते चले गए

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