गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009

लोग



आखिर किस सभ्यता का बीज बो रहे हैं लोग
अपनी ही गलतियों पर आज रो रहे हैं लोग
हर तरफ फैली है झूठ और फरेब की आग
फिर भी अंजान बने सो रहे है लोग
दौलत की आरजू में यूं मशगूल हैं सब
झूठी शान के लिए खुद को खो रहे हैं लोग
जाति, धर्म और मजहब के नाम पर
लहू का दाग लहू से धो रहे हैं लोग
ऋषि मुनियों के इस पाक जमीं पर
क्या थे और क्या हो रहे है लोग
                         "प्यासा"  

3 टिप्‍पणियां:

  1. आप ने हमारे ब्लोग पर जो टिप्पणी की उसी के सहारे आपके ब्लोग तक पहुँचा हूँ।आप की रचना अच्छी लगी।सामयिक रचना लिखी है।बधाई ।

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  2. kitni gahrayi se aaj kee dahshatjada zindagi ko likha hai,ek - ek dard kee gahri rekha

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अपना अमूल्य समय निकालने के लिए धन्यवाद
क्रप्या दोबारा पधारे ! आपके विचार हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं !