तुम्हे याद है हम दोनों पहले यहाँ आते थे
घंटो रेत पर बैठ कर
एक दुसरे की बातों में खो जाते थे
तुम घुटनों तक उतर जाती थी सागर के पानी में
और मै किनारे खड़ा तुम्हे देखता था
पहले तो तुम बहुत चंचल थी
लेकिन अब क्यों हो गई हो
समुद्र की गहराई की तरह शांत
और मै बेकल जैसे समुद्र में उठती लहर
रविवार, 2 मई 2010
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"वाह बहुत शानदार लिखा है..."
जवाब देंहटाएंdard utara hai bahut khoob
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना.
जवाब देंहटाएंbahut sunder kavita
जवाब देंहटाएंbahut komal se ehsaas
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंBAHUT KHUB
जवाब देंहटाएंBADHAI AAP KO IS KE LIYE
उम्दा ख़याल को नज़्म किया है आपने
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
मुबारकबाद