रविवार, 2 मई 2010

लहर

तुम्हे याद है हम दोनों पहले यहाँ आते थे




घंटो रेत पर बैठ कर



एक दुसरे की बातों में खो जाते थे



तुम घुटनों तक उतर जाती थी सागर के पानी में



और मै किनारे खड़ा तुम्हे देखता था



पहले तो तुम बहुत चंचल थी



लेकिन अब क्यों हो गई हो



समुद्र की गहराई की तरह शांत

 
 
और मै बेकल जैसे समुद्र में उठती लहर

8 टिप्‍पणियां:

  1. "वाह बहुत शानदार लिखा है..."

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  2. उम्दा ख़याल को नज़्म किया है आपने
    बहुत ख़ूब
    मुबारकबाद

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