मंगलवार, 11 मई 2010

मन सावन ----------- {कविता} ------------------- सन्तोष कुमार "प्यासा"

मन सावन



मन सावन मन उमड़ते, अभिलाषाओ के बादल


गिरती जीवन धरा पर, विचारो की बूंदें हर पल


आशाओं की दामिनी कौंधती मन में


सुख दुःख की बदली, करती कोलाहल


परिश्तिथियों की बौछारों से गीले होते जीवन प्रष्ठ


मन के मोर, पपीहे, दादुर , मन सावन में भीगने को बेकल


विचारों की बूंदों से ह्रदय के गढढे उफनाए


आशा-निराशा की सरिता बह चली, तीव्र गति से अविरल


मन सावन मन उमड़ते, अभिलाषाओ के बादल


गिरती जीवन धरा पर, विचारो की बूंदें हर पल

1 टिप्पणी:

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