शुक्रवार, 4 जून 2010

सीनियर ब्लोगर नहीं समझते शालीन भाषा {तो लो फिर, सठेसाठे समाचरेत}संतोष कुमार "प्यासा"

मैंने कल अपनी पोस्ट में नरम एवं सरल भाषा का प्रयोग किया ! ताकि सीनियर लोग ब्लॉगजगत को दूषित न करे ! लेकिन शालीन एवं सरल भाषा बुढाऊ और माठाधीशो के समझ में ही नहीं आती ! आए भी क्यों जिसके अन्दर जो है वो उसी का तो प्रदर्शन करेगा ! सीनियर ब्लोगरो के भीतर सभ्यता नाम की कोई चीज़ रत्ती भर भी नहीं है ! अगर होती तो ब्लोगजगत को दूषित न करते ! एक सरल शालीन लेख क्या लिख दिया गुट्बजो ने सोंचा की हम डर गए ! ये हमारी नम्रिता को हमारी कमजोरी समझने लगे ! अरे माठाधीशो सबको अपनी तरह कमजोर और डरपोक न समझो ! खुद कायरता दिखाते हो ! खुलकर सामने आने ही हिम्मत नहीं है ! गालिया देने के अलावा और कुछ आता भी नहीं है ! लेकिन कब तक ! अब तुम्हारी मठाधीशी ख़त्म समझो ! "जूनियर ब्लोगर असोशिएसन" का गठन ही तुम जैसे ब्लोगरो को अपनी मनमानी न करने देने के लिए हुआ ! कुछ दिन ब्लोगिंग क्या कर ली सोंचा की ब्लॉगजगत पर तुम्हारा राज है ! अब क्यों नहीं आते खुलकर ! क्यों डरते हो सच का सामना करते ! लाचारगी के अलावा तुम्हारे पास है भी क्या ! भभक रहे हो भभक लो ! अब "जूनियर ब्लोगर असोशिएसन" बताएगा तुम्हे ! की दुसरे के साथ अन्याय करने का क्या परिणाम होता है !
नजर कमजोर हो गई है ! पैर कबर पर लटक रहे है ! लेकिन अभद्रता के अलावा कुछ और सूझता ही नहीं तुम लोगो को ! अब करो गुटबाजी, अब दिखाओ मठाधीशी ! तुम्हारी हर बात का जवाब देगा "जूनियर ब्लोगर असोशिएसन" ! और हा जितनी भी गालिया तुम्हारे माँ बाप और तुम्हारे आकाओ ने तुम्हे सिखाई है ! सबका प्रयोग करलो ! क्युकी ये तुम्हारा सहारा है ! इसके अलावा तुम कर भी कुछ नहीं सकते ! तुम्हारी लाचारी से वाकिफ है हम

और अंत में.....
तेरे पास गालिया है, तू देता जा हमें
हम तो ये तेरी लाचारी मजबूरी समझके सुन लेंगे !

9 टिप्‍पणियां:

  1. गाली-गलौच तो करनी ही नहीं चाहिए। यदि बहुत जरूरी हो तो केवल साले-फुले ही बोलना चाहिए। हर किसी को मां-बहन की गाली देने से गालियों की भी बेइज्जती होती है। यह बात चाहे सीनियर हो जूनियर हर किसी को समझनी चाहिए।
    आप अच्छे लड़के लग रहे हैं आपके साथ अच्छी बात यह है कि आप इतनी गालियां मिलने के बाद भी क्रोधित नहीं हो रहे हैं। यह एक संत का गुण है। आप संत बनने की ओर अग्रसर है। जो लोग आपको अभी अंड-बंड बक रहे हैं वे लोग कल को पछता सकते हैं क्योंकि यह तय है कि आप एक न एक दिन आस्था चैनल में अमीर घरानों की महिलाओं को प्रवचन देते हुए नजर आओगे। लोगों को तब समझ में आएगा कि संतोष कुमार प्यासा कोई मामूली संत नहीं था।
    बोलो.. प्यासा महाराज की जय।
    और हां... किस...... ने आपको गाली दी है जरा बताना तो।

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  4. आईये जानें .... मैं कौन हूं!

    आचार्य जी

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  5. @ rajkumar soni
    gali galauj nahi karni chahie ye buri bat hai, lekin ye kahna ki blogar ke kutte bana rahe asosiasan kahana mahan bat hai.
    mere andar kisi sant k gun nahi mata pita k achche sanskar hai. gali galauj mai bhi kar sakta hu. lekin kise gali du jo kamjor darpor kayar hai. jisme apna nam batane jatane ki bhi himmat nahi hai.
    aur ha agar mai kabhi astha par bhashn dene gaya to aap apne parivar sahit dekhna

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  6. प्यासा जी,
    हो सकता है आपसे ये वर्तनी विकार गुस्से में हो गए हों...पर कोई बात नहीं...
    जैसे ब्लोगर के स्थान पर ब्लॉगर लिखें तो बेहतर हो
    सठे साठे नहीं...शठे शाठ्यम समाचरेत्...मतलब शठ(दुष्ट) के साथ शठता का व्यवहार
    नरम की जगह नर्म, बुढ़ाऊ नहीं बुढ़ऊ या वृद्ध भी चलता
    माठा नहीं मठाधीश...गुट्बजों नहीं गुटबाज़ों...नम्रिता नहीं नम्रता...
    असोशिएसन नहीं असोसिएशन
    कबर के स्थान पर कब्र, क्युंकी के स्थान पर क्योंकि या क्यूंकि...
    दरअसल आप जैसे सुलझे और उत्कृष्ट ब्लॉगर से हम सभी सुधी पाठकों की अपेक्षा है कि आप कम से कम प्रूफ रीड कर के ही हमें ज्ञानवर्धक और शिक्षाप्रद सामग्री प्रदान करते रहेंगे
    आभार...

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अपना अमूल्य समय निकालने के लिए धन्यवाद
क्रप्या दोबारा पधारे ! आपके विचार हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं !