मंगलवार, 10 अगस्त 2010

डायरी {कविता} सन्तोष कुमार "प्यासा"

मुझे मत समझना महज एक डायरी

मै हूँ किसी की ज़िन्दगी, किसी की शायरी

कुछ लोग समझते है मुझे अपनी प्रेमिका

मुझसे चलती है कई लोगों की आजीविका

कवी,लेखक,. प्रेमी हो या विद्वान, सभी मुझे अपनाते है

निज ह्रदय के गूढ़ राज मुझमे छाप जाते है

मै महज एक शौक नहीं, मै हूँ वेदना किसी के उर की

मुझमे लिखी है दास्ताँ किसी के तसव्वुर की

मुझमे मिल सकते है किसी दार्शनिक के हितकारी विचार

मुझमे अंकित अक्षर बन सकते है, प्रलयकारी तलवार

मुझमे क्षमता है, मै बदल सकती हूँ समाज

मुझसे कुछ छुपा नहीं, मै हूँ राज की हमराज..........

2 टिप्‍पणियां:

अपना अमूल्य समय निकालने के लिए धन्यवाद
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