शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

भ्रष्टता का मजबूत होता मकडजाल ------- सन्तोष कुमार "प्यासा"


हाल में जारी १७८  भ्रष्ट देशों की सूचि में भारत का ८४ वाँ स्थान है, जो की इस बात का प्रमाण है की भारत  में भ्रष्टाचार घटने के बजाय बढ रहा है, क्योकि  पिछले वर्ष भारत इस सूचि में ८४ वें स्थान  पर था!
चूँकि पिछले वर्षों में जारी भ्रष्ट देशों की सूचि को भारत सरकार ख़ारिज करती रही है, इसलिए इस बात के आसार अधिक हैं की इस बार भी वह ऐसा ही करेगी !
भारत सरकार अपनी ईमानदारी और स्वच्छ प्रशासन का डंका चाहे जितना पीटती रहे या भ्रष्ट देशों की सूचि को मानने से इंकार करे, लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार रोकने के जितने दावे सरकार ने किये है, वे सभी नितांत खोखले और झूठे  है !
यहाँ  यह कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि केन्द्रीय सत्ता भ्रष्टाचार पर लगाम कसने में असमर्थ है ! इस निर्णय पर पहुँचने का प्रमुख कारण है  द्वितीय प्रशासनिक सुधार योग का "गधे के सर से सींग की तरह गायब हो जाना "!  अब तो लगता है की केंद्र सरकार को यह भी स्मरण नहीं है कि प्रशानिक सुधार आयोग ठण्डे बस्ते में पड़े धुल खा रही है ! यदि उसे इस रपट का स्मरण है तो फिर क्या कारण है कि उसकी सुध नहीं ली जा रही ?
भारत में भ्रष्टाचार ने एक उधोग का रूप धारण कर लिया है ! क्योकि  भारत में भ्रष्टाचार का प्रसार उन्ही लोगो के जरिये किया जा रहा है जिन्हें भ्रष्टाचार रोकने कि जिम्मेदारी सौपी गई है ! जिसका जीता जगता प्रमाण है "राष्ट्रमंडल खेलो में हुई धांधली "! ऐसे लोगो द्वारा  बढ़ते भ्रष्टाचार पर चिंता जाहिर करना "मुह में राम बगल में छुरा" वाली कहावत कि सार्थकता को सिद्ध करता है !
सत्ता के सारथि पारदर्शिता और जवाबदेहि का डंका तो खूब पीटते है, लेकिन सरकारी व्यवस्था में इन दोनों तत्वों का  आभाव ही अधिक है ! कई बार तो आम-जनता को प्रभावित करने वाले और राष्ट्रिय महत्व के निर्णयों के बारे में ये भी पता नहीं चलता कि उन्हें क्यूँ लिया गया ! जब सरकार ही अपने वायदों और नियमों पर अटल नहीं है, तो वो भ्रष्टता जैसी बुराई को कैसे दूर कर सकती है ?
जब तक भ्रष्टाचार को सत्ता का संरक्षण प्राप्त है तब तक उसे दूर नहीं किया जा सकता, क्योकि पहले तो ये लोग राष्ट्रमंडल खेलों जैसे आयोजनों से अपनी तिजोरियां भरते है, फिर बाद में जाँच का राग अलापते  है ! ऐसे भ्रष्ट लोगो द्वारा  भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए किए गए "दावों, विचारो एवं आयोगों" का सीधा अर्थ है आम-जन कि आँखों में धूल झोंकना !

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