मंगलवार, 1 मार्च 2011

अब बस बहुत हुआ {आलेख} सन्तोष कुमार "प्यासा"




अरे अब हम किस बात की प्रतीक्षा कर रहे है ? क्या हम अपने देश को इसी तरह लुटते देखते रहेंगे ?
हमारी आँखों के सामने भृष्टाचार की लपटें बड़ी तेजी से पुरे देश को लीलती जा रही है और हम चुप-चाप बैठें है ! अगर हम अब भी नहीं चेते तो अनर्थ हो जाएगा, हमारा देश हमारे सामने ही लुटता रहेगा और हम सिर्फ तमाश्गीन बने देखते रहेंगे !
इसलिए अब हमें इस बीमारी को जल्द से जल्द ख़त्म करना पड़ेगा, अपने देश को बचाने के लिए अब हमें भी जागना होगा ! क्या आपको पता है की हम भृष्टाचार पर नकेल क्यूँ नहीं कस पा रहे है ?
नहीं पता ? मै बताता हूँ "वास्तव में हम खुद ही नहीं चाहते की भृष्टाचार ख़त्म हो! हमारी सोंच भृष्टाचार की गुलाम बन चुकी है, हम यह मान बैठे है की भृष्टाचार से निपटना हमरे बस की बात नही, हम सोंचते जब सरकार इस बीमारी का इलाज नहीं कर पा रही तो फिर हम क्या कर सकते है !"
हमें बस अपनी इसी सोंच को बदलना होगा ! अगर हम पहले से ही हार मान कर बैठ जाएंगे और जितने का प्रयाश करना तो दूर जितने के बारे में सोंचेगे भी नहीं तो हम कभी नही जीत सकते !
अरे सोंचो तो सही, अगर वर्षो पहले शहीदों ने भी इसी तरह हार मान ली होती, और आजादी के लिए संघर्ष न करते तो अह्बी तक हम अंग्रेजी शासन से मुक्त ही न हुए होते !
देश के लिए जो सम्मान और जज्बा शहीदों के पास था वही जज्बा हमें अपने अन्दर भी जगाना पड़ेगा !हमें एकत्र होकर भृष्टाचार के खिलाफ आवाज उठानी पड़ेगी, विदेशो में जमा अपने पैसो की वापसी के लिए हमें लड़ना होगा, जब तक हम मिलकर सरकार के ऊपर दबाव नही डालेंगे तबतक विदेशो में जमा कालाधन भारत नहीं आ पाएगा,  अरे हमें अब तो सत्ताधारियों के असली चेहरे की पहचान हो जानी चाहिए, इनकी दिलचस्पी देश के विकाश में नहीं बल्कि अपनी जेबे भरने में है ! इनका तो बस एक ही तकियाकलाम है "जब तक सत्ता में हो जेबे भरो और खूब उडाओ, फिर कभी पकडे जाने पर जांच का छुन्छुना बजाओ"!
भृष्टाचार से मुक्ति लिए हमें अब और अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए, जिस तरह आजादी के समय म० गांधी ने कहा था की "मै स्वतंत्रता के आने की अब अधिक प्रतीक्षा नहीं कर सकता ! यदि मै और रुकुंगा तो भगवान् मुझे दण्डित करेगा ! यह मेरे जीवन का अंतिम संघर्ष है "?
इसी तरह हमें भी अब एकजुट होकर इस बीमारी को खत्म करने के लिए संघर्षरत हो जाना चाहिए, वरना हम अपने देश को लुटने और बर्बाद होने से कभी नहीं बचा पाएँगे...    

2 टिप्‍पणियां:

  1. @ AryaSurenderVerma,
    Bilukul sahi kah rahe hai aap, ham swyam hi apne desh ko lutva rahe hai.n,

    par mera kahna to yahi hai ki ab to hame chet jana chahie...

    bhrashtachar ke failna ka karan ham bhi hai...

    mai chahta hun ki ham sirf lekh hi na likhe aur sirf bhashan sune/den,
    balki uspar aml bhi kare.n
    kya apko nahi lagta ki agar ham chah le to sab ku6 sahi ho sakta hai
    par hamari sabse badi vidambna yahi hai ki ham ku6 karna hi nahi chahta,

    ap bilkul sahi kah rahe hai ki ku6 log bhashan to dete hai par krte ku6 nahi....


    lekin hamari bhi to desh ke lie koi jimmedari banti hi kya hame ku6 nahi karna chahie....

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अपना अमूल्य समय निकालने के लिए धन्यवाद
क्रप्या दोबारा पधारे ! आपके विचार हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं !