बुधवार, 27 अप्रैल 2011

दिमाग की दुष्मन टैक्निकः-



भई मानना पडेगा टेक्निक ने तो हमारी दुनिया ही रंगीन कर दी है। कम्प्यूटर, मोबाइल, इण्टरनेट मानो अब एक ही क्लिक  या बटन को प्रेस करके ं दुनिया की सारी जानकारी हमारे पास आ जाती  है। लेकिन क्या आपको पता है कि जहाॅ  ये टेक्निक्स हमारी  लाइफ को बिंदास बना रही हैं वहीं दूसरी  ओर ये हमारे दिमाग की सबसे बडी दुष्मन हैं। इन्षान के दिमाग को चलाने में जिज्ञासा का अहम योगदान है और ये टेक्निक इसी ’’ह्यूमन हेल्पिंग वायरस’’ की सबसे बडी दुष्मन हैं। जिज्ञासा को मारने में वर्तमान टेक्निक का  मुख्य उपादान है ’’इंटरनेट’’ । पहले   बच्चों में किसी नई चीज के बारे में जानने की उत्सुकता रहती थी, जिसे घर के बडे बुजुर्ग अपने तर्क से शाॅत करते थे। लेकिन अब के बच्चों में किसी विषय के बारे में जानने की उत्सुकतामय जिज्ञासा नही रही।  अब वो बडे बुजुर्गो  के पास जाने की अपेक्षा ’’इंटरनेट’’ पर जाना अधिक पसंद करते है,  क्यूकि उन्हे पता है कि बडे उनकी जिज्ञासा को शाॅत करने के लिये कई प्रकार के दिमाग खाउ तर्क देगें जिनको समझने के लिये उन्हे अपना दिमाग खपाना पडेगा। इसलिये बच्चे दिमाग चलाने से बचने के लिये ’’इंटरनेट’’ पर जाते है।
टेक्निक न सिर्फ बच्चों बल्कि बडों के दिमाग की भी दुष्मन है। इसकी वजह से ही प्रजेन्ट जनरेषन की याद्दाष्त कमजोर होती जा रही है। हमें किसी भी काम को किसी खास समय में करने (याद रखने) के लिये मोबाइल के ’’रिमाण्डर आॅप्सन’’ का यूज करना पडता है। यहाॅ तक की कल क्या करना है, कहाॅ जाना है, मार्केट से क्या खरीदना है इत्यादि की फिंिडंग भी मोबाइल पर करनी पडती है। ये कोई टैक्निक का सद्ोपयोग नही बल्कि दिमाग का र्दुउपयोग एवं  क्षरण करना है। इस विषय यह कहना भी गलत नही होगा कि हम मेंटली वीक होते जा रहे है। हमारे दिमाग में इतनी भी क्षमता नही रही कि हम कुछ याद रख सकें।
ये सब सिर्फ हमारे दिमाग न चलाने का परिणाम है। हम टैक्निक्स के इतना अधीन हो चुके हैं कि अपना दिमाग चलाना ही नही चाहते। छोटे-से-छोटा हिसाब करने करने के लिये हमे कैल्क्यूलेटर का यूज करना पडता है। जबकी हमारे बुजुर्ग बडे-से-बडे हिसाब को मिनटों में मौखिक ही हल कर देते थे। उनकी याद्दाष्त इतनी अच्छी  थी  कि किसी बात को वो अपने दिमाग में हमेषा के लिये सेब कर लेते थे। ऐसा सिर्फ इसलिये होता था, क्योंकि हमारे बुजुर्ग अपने दिमाग का भरपूर उपयोग करते थे, वो अपना दिमाग चलाने में तनिक भी नही हिचकतें थें। जिस वजह से उनका दिमाग तेज और स्वस्थ रहता था।
वास्तव में दिमाग को या कोई अन्य वस्तु अगर अगर उसका इस्तेमाल होता रहे तो वो हमेषा स्वस्थ और सही रहेगाा। माॅरल आफ द स्टोरी यह है कि ’यदि हमें अपनी ष्याद्दाष्त मस्त और दिमाग दुरस्त रखना है तो दिमाग को ज्यादा से ज्यादा यूज करना चाहिये। और छोटी-मोटी  चीजों के लिये  टैक्निक्स का सहारा नही लेना चाहिये।


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