रविवार, 24 जुलाई 2011

बेनूर चाँद {गजल} सन्तोष कुमार "प्यासा"



















एक दर्द में फिर डूबी शमा, फिर चाँद हुआ बेनूर
बिखरा दिल, टीसती यादें तेरी भला क्यूँ हुए तुम दूर
करूँ वक़्त से शिकवा या फिर अफ़सोस अपनी किस्मत पर 
तरसती "प्यास" में तडपूं हर पल, ऐसा चढ़ा उस साकी का सुरूर 
ये कशिश है इश्क की या दीवानगी का कोई दिलकश सबब
तडपती जुदाई उसी को क्यूँ , जो होता प्यार में बेकसूर 
हजारों तारों के साथ भी आसमां क्यूँ हुआ तनहा
जब बंद हो गईं आंखे चकोर की, चाँद भी हो गया बेनूर 
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मन के अन्तरम में पता नहीं कैसी टीस कैसी बेचैनी उठी,
फिर न चाहते हुए/ न जानते हुए भी इन पंक्तियों को  और क्यूँ  कैसे
शब्दों में पिरोया मैंने, मै खुद नहीं  समझ सका  !

3 टिप्‍पणियां:

अपना अमूल्य समय निकालने के लिए धन्यवाद
क्रप्या दोबारा पधारे ! आपके विचार हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं !