रविवार, 11 दिसंबर 2011

तब तो सिर्फ प्याज महँगी थी... सन्तोष कुमार "प्यासा"





आपको याद होगा कुछ साल पहले जब अटल जी प्रधानमंत्री पद पर कार्यरत थे, तब प्याज की महंगाई से सारा देश आक्रोशित था, अपोजिशन ने उस समय खूब उछल कूद की थी, सरकार पर दूरदर्शिता की समझ
न होने का आरोप लगाया था, हड़ताल, बंदी जैसी न जाने कितनी ही प्रकार की गतिविधियों का हुजूम देश भर में उमड़ पड़ा था ! यु० पी० ए० ने दहाड़-२ कर कहा था की अगर वो (य़ू० पी० ए०) सत्ता पर होते तो देश को ये दिन नहीं देखना पड़ता! लेकिन आज जब य़ू० पी० ए० सत्ता पर आई तो उसने तो पहले से बदतर दिन दिखा दिए ! अरे पहले तो सिर्फ प्याज ही मंहगी हई थी, पर आज क्या मंहगा नहीं है, खाने से लेकर यातायात, शिक्षा आदि समस्त क्षेत्रों में मह्नागाई उछाल मार रही है ! अब शायद सत्ता के सारथियों को यह मंहगाई नहीं दिख रही है ! क्या बड़े-२ बोल वचन सिर्फ कुर्सी हथियाने के लिए किये थे ? आखिर कहाँ गई वो दूरदर्शिता ? कहाँ कहाँ गया वो अर्थशास्त्र का ज्ञान ? कहाँ गई वह व्यवस्थित राजनीती प्रणाली की समझ ? जिसकी गाथा गाते नहीं थकते थे आप ! अरे जनाब मंहगाई तो क्या आप तो  देश में अशांति और आतंकवाद को भी विस्तृत होने से नहीं रोक पा रहे है ! पहले कम से कम देश में शांति तो कायम थी ! अगर तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाय तो स्पस्ट होता है की जब अटल जी सत्ता पर देश उस समय देश में अधिक शांति थी ! आज भारत और पाक को एक सूत्र में बांधने का कार्य जो बस कर रही है वह भी अटल जी की ह़ी देन है ! "पोखरण परिक्षण" भी अटल जी की वजह से संभव हुआ !

लेकिन य़ू० पी० ए० ने देश को कभी "राष्ट्रमंडल खेलो में धांधली, तो कभी टू जी स्पेक्ट्रम का गड़बड़ घोटाला, कभी अलगाववाद से सुलगती हुई घाटी और नक्सलवाद के आलावा दिया ह़ी क्या है ?  अरे जनाब दूसरे पर उंगली उठाना बहुत आसान है, जरा अपनी गिरेबान पर भी झांक कर देखिए !

1 टिप्पणी:

अपना अमूल्य समय निकालने के लिए धन्यवाद
क्रप्या दोबारा पधारे ! आपके विचार हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं !