मन नौका विचरती है विचारों के सागर पर
आश निराश के मौजों में डगमगाती इधर उधर
कहीं गहरा तो कहीं उथला है सागर
सुख दुःख के दो पतवारों से पार करनी है तूफानी डगर
उम्मीदों के टापू मिलते
व्याकुलता तज , कुछ क्षण को जाते ठहर
अरमानो का पंक्षी उड़ जाता है
बेबस होकर पुन: वापस आए लौट कर
मन नौका विचरती है विचारों के सागर पर
शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010
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wow !!!!
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna he
shekhar kumawat
kavyawani.blogspot.com/