होता है बेदर्द गरीबी का पहरा
दर दर की ठोकर खिलाती गरीबी !
गरीबी में ईमान इंसान बिकते
मानव को दानव बनाती गरीबी !
गरीबी के गर्दिश में गरिमा भटकती
भूपति को भिक्षुक बनाती गरीबी !
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अम्बु के अंक में, खिलता कमल पंक में,
फिर भी दुनिया में पाटा वो सम्मान है !
लाख गम झेल कर तूभाँ से खेल कर
धर्म को जो निभाए वो इंसान है !
गरीबी में पल कर इन्सान महान होता है
गरीब तन और धन का, पर दिल का अमीर होता है !
बुधवार, 16 दिसंबर 2009
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Are wah....
जवाब देंहटाएंchhote se shabdon me bahut badi baht kahdi aapne...!
BAHUT SUNDAR bAAV HAI.
जवाब देंहटाएंविचारप्रधान कविता, लय धीरे-धीरे ही सधेगी...प्रयास करते रहिये. divyanarmada.blogspot.com देखिये.
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