बुधवार, 11 मई 2011

आतंक के खिलाफ भारत का कदम...<> सन्तोष कुमार ‘’प्यासा’’


अरे अब बस, बहुत शाॅति प्रचार कर लिया हमने। खूब नम्रता दिखा चुके हम। खूब अपने दुष्मनों को बढावा दे चुके हम। अब तो हमें आतंक के खिलाफ कोई ठोस कदम उठाना ही पडेगा। कोई कारगर राजनीतिक फैसला लेना ही चाहिए। क्यूॅकी अब पानी सर के उपर हो चुका है, अगर अब हम हाॅथ पैर नही चलाएंगे तो कोई भी हमें डूबने से नही बचा सकता। अबतक भारत ने दूसरे देषों को सिखाया है, लेकिन अब बारी है खुद भारत के सीखने की। भारतीय सत्ता के सारथियों को अमेरिका से सीख लेनी चाहिए। सीख अपने दुष्मन को खत्म करने की। सीख दुष्मन को दुनिया के किसी भी कोने से ढूॅढ निकालने की। सीख अपने वतन के अहमियत की। सीख देष के आन-बान और शान की सुरक्षा की।
अब भारत को चाहिए की अपना शाॅति और नम्रता का चोला उतार कर रख दे। और कोई ठोस कदम उठाये जिससे की आतंक पर नकेल कसी जा सके । अब सिर्फ वार्ता करने से कुछ नही होने वाला। फिर वार्ता और शाॅति समझौता किस बात का ? और किससे ?
उस पाकिस्तान से जो आतंक पालता है। उस पाकिस्तान से जो हमेषा  झूठे-पर-झूठे वादे, दावे करता है। अरे अब तो हमें पाकिस्तान के असली चेहरे की पहचान हो जानी चाहिये। क्योंकी उसने तो झूठ, फरेब, धोखा और दहषतगर्दी  के अलावा कुछ सीखा ही नही। एक तरफ तो पाक अमेरिका को समर्थन देता रहा और अलकायदा को खत्म करने में अमेरिका का हमकदम बनने का दिखावा करता रहा, और दूसरी ओर अलकयदा सरगना ओसामा को पनाह भी दे रखी थी। ये पाकिस्तान का पहला झूठ नही है। इससे पहले उसने मुम्बई के 26/11 हमले में पकडे गये आतंकी अजमल कसाब को  पाकिस्तानी वासिंदा मानने से इंकार किया था, लेकिन बाद में सच सामने आ ही गया की कसाब पाकिस्तानी है।
ऐसे झूठे और मक्कार देष से क्या वार्ता करना ? और क्या उसके वादों पर ऐतबार करना ? वैसे भी हमने आजतक वार्ता करके पाया भी क्या है ? आखिर हमें क्या मिला है इस वार्ता से ? कभी मुम्बई के धमाके ? तो कभी हजारों मासूम निर्दोष जनता की चीखें ? या अलगाववाद की चिंगारी से सुलगती घाटी ? इन सबके के अलावा हमने क्या पाया ? कुछ भी तो नही।
अब भारत को अपनी कायराना नीति बदलने की जरूरत है। जब तक हम अपने दुष्मनों को जेल में रखकर उनकी खातिरदारी करते रहेगेें तब तक उनके नापाक इरादे बुलंद रहेगें। अगर हमें दहषत की जिन्दगी से मुक्ति पाना है, देष में शाॅति कायम रखना है, एक भयमुक्त देष का निर्माण करना है तो हमें आतंक का खात्मा करना ही पडेगा। और आतंक का खात्मा तभी मुमकिन है जब हम आतंकवादियों का खात्मा करेंगें। हमें अपने दुष्मनों का खात्मा करने की जरूरत है। उनकी खातिरदारी करने की नही। भारत को पाकिस्तान में घुसकर आतंकी ठिकानों का खात्मा करना चाहिये। यहाॅ पर हमें भारत और पाकिस्तान के की सामरिक क्षमता का भी हवाला नही देना चाहिये। क्योंकि अगर पाकिस्तान से आतंकी भारत में आकर आतंक फैला सकते हैं तो क्या हममें इतनी भी क्षमता नही कि हम पाकिस्तान में घुसकर आतंकी ठिकानों का खात्मा कर सकें।



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