कुछ इस दिलकश ढंग से मेरी ज़िन्दगी चली
मंजिल की तलाश में उम्र भर भटका इस उस गली
इक खामोश दर्द की तड़प में गुजरे है दिन
कभी तन्हाई तो कभी रुशवाई में मेरी शाम ढली
न पूंछ तू, कि मेरे अकेलेपन की दास्ताँ क्या थी
मुझे तो रंगीं महफ़िलो में भी तेरी कमी खली
वक़्त ने कुछ यूँ सितम ढाया है मुझपर
रोशन होने से पहले बुझ गई, जो कभी चाहत कि शमा जली
जब भी मुस्कुराने कि खता मैंने कि है
रूठ गई हंसी मुझसे , देनी पड़ी खुशियों की बली
बहुत सुंदर गीत ....
जवाब देंहटाएंजिंदगी का यही फलसफा है कभी दुःख हैं तो ख़ुशी भी आयेगी ..
जवाब देंहटाएंकाली गहरी रात है तो समझो उजाला नजदीक है..
बढ़िया रचना..