मै कवी हूँ मुझे भावनाओं के संग बहना पड़ता है
कहना पड़ता है !
मै कवी हूँ मुझे भावनाओं के संग बहना पड़ता है
गरीब तुम हो तो गरीब मै नही हूँ, दुखी तुम हो तो दुखी मै भी हूँ
प्रकृति का यह नियम मुझे भी सहना पड़ता है !
मै कवी हूँ मुझे भावनाओं के संग बहना पड़ता है
पता है मुझे की समाज में फैली है बुराई, हर जगह खून खराबा
और कुछ नहीं तो घरेलू लड़ाई
पर क्या करूँ मजबूरन यहाँ रहना पड़ता है !
मै कवी हूँ मुझे भावनाओं के संग बहना पड़ता है !
आदमी के लहू का "प्यासा" है आदमी, इस कदर जुल्मो सितम
से ऊब गई है जमीं
बस यही सोंच कर बढ जाती है हिम्मत, पाप का महल चाहे
लाख बना हो मजबूत
एक न एक दिन उसे ढहना पड़ता है !
मै कवी हूँ मुझे भावनाओं के संग बहना पड़ता है !
शनिवार, 5 दिसंबर 2009
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व्यथित, उथल-पुथल से भरे जीवन के सत्य
जवाब देंहटाएंकवी के स्थान पर कवि होगा ...!!
जवाब देंहटाएंvery good poem.
जवाब देंहटाएंbahut badiya rachna
जवाब देंहटाएंमै कवि हूँ मुझे भावनाओं के संग बहना पड़ता है !............
जवाब देंहटाएंbahut hi achcha bhaawnaon ke saath to bahna hi padega nahi to kavi kaise?
प्यारे अनुज..... संतोष....
जवाब देंहटाएंमैं अभी आता हूँ..... फिर आराम से पूरा ब्लॉग देखूँगा..........
आप की रचना के भाव अच्छे हैं बधाई।
जवाब देंहटाएंभावनाओं के संग तो साधारण इंसान बहता है कवि को नियंत्रण करना होता है ।
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